बरसात— वरसाथ
मिलते जुलते है ये शब्द लेकिन मायने बिल्कुल अलग, है ना ।
अभी बरसात wao मस्त बरस रही है धीमे धीमें फुहारे पड़ रही है जिन्हे हम झड़ कहते है,अपनी ही राग में मधुर संगीत सुना रही है,बहुत ही खुशनुमा मौसम हल्की सी ठंडक चाय और गर्मा -गरम पकोडे़ खाने की इच्छा —लेकिन ये वो ही बात है एक घर मे मातम और एक घर मे शहनाई ।
यही तो है जिसने उसके सपने छीन लिए लहलहाती फसल जो परिणाम पर आ गई थी ,नष्ट कर दिया वो कुछ ना कर सका मेढ पर बैठा भीगी आंखो के आंसु बरसा के पानी के साथ मिला वो भीगता रहा ।
देखता रहा आसमां के मालिक तुझे
निगाहें उठाकर
नजर नही आया तु कहीं पर ।
आया तो आया तेरा कहर नजर
जो छीन ले गया मेरा
महीनो का सफर
मंजिल यथावत ,इम्तिहान बाकी है।
बेटी है सयानी सेठ का कर्ज बाकी है।।
वाह रे नियति तू कितनी
निष्ठुर है ।
तेरा क्या दोष कलियुग का असर है ।।
जो भरता है पेट सबका (अन्नदाता )
एक खाता सीने पे गोलियां।
उनके दुख दरद से दुनिया बेखबर है ।।
कभी अतिवृष्टि कभी अनावृष्टि प्रकृति का सीधा असर पड़ता है किसान पर ये दो रुपये किलो लहुसन ,गोबी ,टमाटर आप सोच सकते हो खाद ,बीज के रुपये नही निकलते ,सुरसा के मुख की तरह बडी मंहगाई और वो चक्रवृति ब्याज ,जान ले लेता है किसान की ।
सब चीज का गणित बिठाने वाले नेताओं कहां farmhouse ,कहां factory ,कौनसी agencey क्या क्या करना है सब हो गया । इनके लिए क्या कर सकते हो ।सर्वे करवाओ जिसका जितना नुकसान उसका मुआवजा दिलवाओ ।
भगवान भला करेगा ।