बहुत टूटी हूं अनायास
जब दुख आ जाता है।
बिखर जाती हूं जब मेरे परिवार पर कोई आँच आती है सहनशक्ति भी जब साथ छोड़ने लगती है
तब सोचती हूं —
नारी हूं इतनी कमजोर नहीं की हवाओं के इशारों पर बह जाऊं
फिर खिलखिला कर हंसती हूं ।
और दुख और परेशानी से कह देती हूं ,
रास्ता देख , पीछे से खुशियां आ रही है
दोस्तों
आप में से कौन-कौन हैं वीर और बहादुर जो दुख को हंसकर टाल देता है।